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फूल और कांटे, अंधेरे और उजाले मे थोडा ही फर्क है। आंखें धोका खाती हैं और फुल के बदले आदमी कांटा तोंड लेती है। बिजली की चमक, आंखों की रोशनी भी साथ ले जाती है, अकल अगर साथ न दे तो भलाई बुराई बन जातीं हैं-जैसा के भगू की भलाई डाकूने अपनी बुराई का मददगार बना लिया। भगू सीधा साधा मोहोब्बत भरा दिल रखनेवाला, गरीब मांका एकलौता लडका था। अपने साथीयोमें मिल जलकर सुख-शांतीका जीवन बसर कर रहा था के डाकूवो की लूटमार शुरु हुई। जमींदार के सताये हुये गाँववाले अपने गाँव को डाकूवो से बचाने के लीये एक हो गये लेकीन किस्मत के लिखे को कौन मिटा सकता है। गांवपर डाका पडा और लूटके माल के साथ चैधरी की लडकी कम्मू को भी उठा ले गये। अगर जमींदार अपनी बन्दूके बचाव के लीये गांववालो को दे देता तो शायद ये दिन देखना न पडता। लेकिन गरीब किसानोंसे जमींदार की जान जादा किमती थी। कम्मू के बगैर भगू की जिन्दगी में क्या रह गया। उसकी दुनिया लूट गई थी। दिलमें सन्नाटा ही सन्नाटा था। गांवके नौजवानोने चैधरी के लडके रामूकी सरदारी डाकूके हाथसे गाँवकी गई हुई इज्जत कम्मू को वापस लानेका फैसला किया। भग्गूभी उनके साथ साथ चला, ये बडी हुशियारीसे डाकूके अड्डेमें पोहोच गये और कम्मूको छुडानेका वख्त आही गया था के सबके सब डाकू के हाथो मे फस गये। डाकूके सरदार नें इस गलती की सजायें मौत का हुकूम सुना दिया। सब अपनी अपनी मौतका इन्तजार कर रहे थे के भगूनें अपनी जानपर खेलकर जिन्दगी की आखरी लढाई लढी। ये अकल की लढाई थी। कम्मू भी आझादी भगू के लिये महंगी पडी। डाकूवो के सरदारने भगू के साथ वैसी ही चाल की।
भगू की शराफत ही को भगूका जाल बना दिया। गावमें गांववालो की आझादी की खूशी में पूजा हो रही थी और भगूकी मां चैधरी की खुशामद कर रही थी के ये अधूरी पूजा न करो। अभी मेरा बच्चा डाकूओंके कैदमें है पहले उसे छुडा लावो फिर सब मिलकर पूजा करेंगे। लेकीन चैधरी अपने बच्चोंके मिल जानेके खूशी में गरीब भगूकी मां का कहना न सून सका, डाकू के सरदारनें इसी मौकेसे फायदा उठाया। उसने भगूको ये सब कुछ अपनी आंखो से देखने का मौका दिया, और भगू की राह बदल दी। जिन लोगों के लिये भगू ने सब कुछ किया था उन लोगों ने भगू की रिहाई की भी पर्वा न की। भगू की माँ का भी कहना न माना, ये कैसे दोस्त है-ये कैसी मोहब्बत-ये कैसी दुनिया-भगूने दिलकी हर जंजीरें तोड दी, अब भगू एक बड़ा डाकू था। वो सब की जिन्दगी का खतरा बन गया था। हर तरफ इसकी गिरफतारी के लीये इनामी इस्तेहार लगे लगे हुये थे, और भगू किसी की हाथ न आता था।
डाकू इतनी बडी ताकद को अपने हाथसे किसी किमत पर जाने देने के लीये तैयार न थे। भगो को अगर दुनिया में अब किसी की फीकर थी तो सीर्फ मां की, और डाकूवो के लीये ममता ही ऐसी बेढी थी जो भगूके पाँवमें ढालके, नेकी की तरफ से भगूकी राह मोडने के लीये काममें लाई जा रही थी, रामू जैसा दोस्ट भगू का दुष्मन था। कम्मू के लिये अब भगू के दिल में कोई जगह न थी। कम्मू अपनी जानपर खेलकर डाकूवो के अड्ढे में पोहोची, लेकिन भगू ने उसे भी ठूकरा दिया। अब कौनसी ताकद थी जो भगू को भला आदमी बना सकती थी। उसे सीधी राहपर ला सकती थी, वो मां थी सीर्फ मां, लेकिन मांने अपनी ममतासे क्या काम लिया, चैधरी और जमीदार ने किस तरहा अपनी भूल सूधारी-रामूने अपने दोस्त भगूके लिये क्या-कैसा गाँव, और गाँववालो की तकदीर किस तरहा बदली-कम्मू का अंजाम क्या हुवा-ये सब कुछ आप अपनी आंखों से परदे पर देखीयें।
[from the official press booklet]